About Satguru Garibdas ji
सतगुरू गरीबदास जी
संत गरीबदास जी का प्रादुभार्व 24 मई 1717 ई. बैसाख शुक्ल पूर्णमासी मंगलवार को प्रातः 4:00 बजे हरियाणा के जिला झज्जर की तहसील बहादुरगढ़ के गांव छुड़ाने में हुआ । ऐसे संतों का अवतरण इस धराधाम पर जीव–जगत के कल्याण के लिए होता है । इस श्रेणी में कबीर साहिब, संत रविदास, नानक जी, गरीब दास जी, पीपा जी आदि महापुरुषों का नाम आता है। उपरोक्त महान विभूतियां अंदर निर्गुण परमात्मा से एकम–एक होते हुए भी, बाहर सगुण शरीर के कारण अलग-अलग रूपों में प्रतीत होती है । परंतु ये सब परमात्मा का ही जीता–जागता स्वरूप है।
साहिब कहो, सतगुरु कहो, संत कहो अवतार ।
गरीब चहुंवा में पद एक है, सत् निर्गुण निज सार ।।
परम शांति प्राप्त पुरुष को ही संत कहते हैं । आध्यात्मिक जगत की व्यवहारिक भाषा में संत परम वैज्ञानिक होता है । वह अध्यात्म की सूक्ष्म गहराइयों से तल–स्पर्श जुड़ा होता है । संत वही जो परमात्मा में खो चुका है । जो जीवात्मा ना रहकर, परमात्मा बन चुका है । जिसे व्यक्त या अव्यक्त प्रकृति भी स्पष्ट नहीं कर सकती । बल्कि वह प्रकृति का स्वामी हो जाता है । चेतन की इस अवस्था को अविगत पद, परम निर्वाण पद, परम पद, कैवल्य पद आदि नामों से संबोधित किया जाता है । उक्त पद प्राप्त पुरुष को परम पुरुष, बुध पुरुष, तीर्थाकर, पैगंबर, औलिया, अवतार, संत, सतगुरु, साहिब तथा कबीर आदि नामों से जाना जाता है।
ऐसे महापुरुषों के नाम, रूप, लीला, वाणी तथा धाम प्रतीकात्मक स्वरूप माने जाते हैं । ये पांचों शक्ति के साधन है एवं भक्तों के लिए पवन तीर्थ–तुल्य होते हैं । इनके दर्शन से, इनको सुनने से, पढ़ने से, चिंतन करने तथा इनके बारे में लिखने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है । इनके दिव्य अलौकिक संस्कार हमारे व्यक्तित्व तथा जीवन को निखारते हैं। इनकी लीलाएं आम जन–मानस की समझ से परे होती है। जीवो को अपने पास खींचने का संतों का अपना ही तरीका होता है । कभी-कभी वे अनोखा ही कोई ढंग अपनाते हैं । संतों की महिमा का कोई पारावार नहीं है ।
संत की महिमा, संत कोई गावै । वेद कटेब पार न पावै ।।
गरीबदास जी ने आधीनी का मार्ग अपनाने पर बल दिया है । जैसे इन्हीं की वाणी में आता है–
- आदिनी और बंदगी से क्षण में उतरे पार…
- सुभर सोई जानिए, सब सेती आधीन…
आधिनी और दीनता इनकी 24000 वाणियों में जगह-जगह स्पष्ट झलकती है । इनका मानना है कि किसी को जितने के लिए तुम्हें दीनता अपनानी होगी, क्योंकि अभिमान कभी नम्रता पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता ।
आपकी सहज साधना अजपा–जप से प्रारंभ होकर, क्रमश: मानसिक जप, मानसिक ध्यान, दृष्टि योग तथा सुरति–शब्द योग पर केंद्रित होती है । आपके लाखों अनुयाई हुए जिनमें 125 ऐसे शिष्य थे जो योग की पराकाष्ठा को प्राप्त कर चुके थे ।
धन्यवाद !
- महर्षि गंगादास जी महाराज
(अधिक जानकारी के लिए महर्षि गंगा दास जी द्वारा लिखित ग्रंथ परम योगेश्वर संत गरीबदास उपलब्ध है )