About Satguru Kabir Sahib ji
कबीर साहिब सर्वशक्तिमान, ईश्वरीय गुणों से युक्त, पवित्र एवं नित्य-मुक्त आत्मा थे । ऐसी आत्माओं को ही सतगुरु कहा जाता है । परमात्मा ऐसी ही आत्माओं को अपना प्रतिनिधि बनाकर, जीव जगत के कल्याणार्थ, हर युग में धराधाम पर भेजते हैं । सदगुरु कबीर साहेब महज अध्यात्म जगत के ही सर्व-ज्ञाता नहीं थे बल्कि संपूर्ण जीव-जगत एवं मानवता के लिए भी वे अति संवेदनशील संत थे ।
उनकी दृष्टि से मानवता का कोई कोना अछूता नहीं रह गया था । उनकी वाणी और उपदेशों में सदैव समरसता की अविरल धारा प्रभावित होती रहती थी । उनकी दृष्टि में हिंदू मुस्लिम, सिक्ख, पारसी, ईसाई आदि सभी कौमों और धर्मों के लोग, एक ही परमपिता परमात्मा की संताने हैं । न कोई ब्राह्मण है और न ही कोई शुद्र । वे अपने उपदेशों में सभी को यही सीख देते थे कि इसमें मुझमें और तुममें कोई फर्क नहीं है । सभी में एक ही रक्त, मांस और अस्थियां है । फिर घमंड किस बात का ? कबीर साहिब के लिए कोई अपना-पराया नहीं है । वे सभी के हैं और सभी उनके । मानवता के प्रति इतनी गहरी संवेदना, इतना गहरा प्रेम, इतनी गहरी तड़प, सिर्फ कबीर साहिब को ही थी ।
उनकी खोज बहिर्मुखी पूजा-पाठ, इबादत आदि से किसी ऊंची वस्तु के लिए थी । कबीर साहिब ने अपने जीवन में जिस मार्ग का उपदेश दिया, वह शब्द का मार्ग है । जीते-जी प्रभु की प्राप्ति और बाहर के रीति-रिवाजों से हटकर अंदर जाने का मार्ग है । संत कबीर अपरा प्रकृति तथा , परा-प्रकृति अर्थात सोहम तथा इन दोनों से परे परमतत्व परमात्मा को स्वीकार करते हैं । चेतन की दो अवस्था है । जीवात्मा और परमात्मा । जब चेतन पर मन हावी हो जाता है तो वह जीवात्मा कहलाता है और जब मन चेतन के वश में हो जाता है तो परमात्मा कहलाता है । जीवात्मा अल्पज्ञ है और परमात्मा सर्वज्ञ । परमात्मा जड़ और चेतन के रूप में संपूर्ण सृष्टि में समाया हुआ है ।
कबीर साहिब के बारे में इतना संक्षिप्त में लिखना ‘ सागर को गागर में ‘ समाने जैसा है । युगपुरुष संत कबीर नामक ग्रंथ उनके विषय में कुछ हद तक जानने के लिए उपलब्ध है ।
धन्यवाद !
- महर्षि गंगादास जी महाराज