सांसारिक संस्कार क्या होते हैं | आश्रम में, मंदिर में जाने का, साधु संतों की संगत का क्या फल मिलता है?

आपको पता है कि एक बैल जो सारा जीवन चरके, खेत मे, खेत की सारी जिमेवारी को समझता है। जब किसी नए बैल को जोड़ते हैं, तो उसको सिखाते हैं कि कैसे हल चलाना सीखा जाता है तो किसी सधे हुय बैल के साथ जोड़ देते हैं। दस पन्द्रह दिन चलने से वो भी पहले वाले बैल की तरह चलने लगता है। ऐसे  सन्तो की सँगत में आकर अच्छे गुण प्राप्त करके वो अपना लोक भी सुधारते हैं, परलोक भी सुधार लेते हैं।सबसे ज्यादा संस्कार घर में माता,पिता देते हैं। ये पहले गुरु हैं जीवन में, और माता-पिता जो संस्कार देते हैं उस समय याचना ये नही करते कि सारी उम्र हमें कमा के खिलायेगा।मेरा बच्चा अच्छा बने, अच्छे संस्कार बने बाहर जाकर कुसंगत में न फसे शराब या किसी नशे के अन्दर पड़ कर अपने जीवन को बर्बाद ना करे। ये साधु संतों की सेवा करे और ये परमात्मा का भक्त बने।संसार से जाये तो परमात्मा का दर खुला मिले। जिसमें ये परमात्मा के दर पर जाकर परम् शांति को प्राप्त हो।

ऐसी माताएं भी हैं जिन्होंने अपने बच्चे को परमार्थ में लगा दिया। ऐसी माताएं भी हैं जिन्होंने अपने बच्चों को संसार में लगाया। पेट तक सीमित रखा पेट के आगे जब मर के जहाँ जाना है- वो बातें नही सीखने दी ना सिखाई।

सतगुरू गरीबदास महाराज जी कहते हैं –

धन्य जननी धन्य भूमि धन्य, धन्य नगरी धन्य देश

धन्य करनी धन्य कुल धन्य, जहाँ साधु प्रवेश।।

जिस कुल में कोई भक्त पैदा होता है।जिस कुल में सन्त पैदा होता है वो माता-पिता धन्य होते हैं। वो पृथ्वी धन्य होती है, वो जगह धन्य होती है उसका आस पास रहने वाला समाज धन्य होता है। क्योंकि वो समाज को भी संस्कार डाल देता है।आपको पता नही माता बचपन से सेवा करती है, दस-दस, पन्द्रह -बीस परिवार के मेम्बरों को रोटी बनाकर खिलाती है। वो ये आशा नही करती के पन्द्रह बीस वाले  जो परिवार के मेम्बर थे मैं जब बूढ़ी हो जाऊँगी वो बीस आदमी मेरी सेवा करेंगे या नही लेकिन देखने को मिलता है वो बीस आदमी एक माता को रोटी नही खिला पाते जो माता बीस आदमी को रोटी खिला के संसार से चली जाती है। ऐसे ही, पिता सारा दिन कमा कर घर मे आकर मुट्ठी बोच कर दे देता है पर ये याचना नही करता कि मेरे बेटे मुझे रोटी देंगे लेकिन ऐसा समय आ गया है कि बीस-बीस मेम्बरों का परिवार होगा तो उसका अकेला बाप वर्द्धशाला के अन्दर बैठा होगा । कोई रोटी खिला के राजी नही होगा | माता पिता का भी फर्ज बनता है कि अपने बेटों को अच्छी जगह लगाय संस्कार डाले ।

संस्कार क्या होते है? उठना, बैठना, बेटा सुबह जल्दी उठना, नहाना, भगवान की पूजा करना, व्यायाम करना औऱ जो भी बड़ा मिले उनको प्रणाम करना। ये सारे संस्कार, बाहर जाना घुमना कोई भी गाँव का सयाना व्यक्ति मिले उसको प्रणाम करना। रोटी खाना तो दाहिने जाड़ो से चबा कर खाना दाहिनी तरफ से, किसी को ज्यादा देख कर नही चलना, बहन बेटो को नीची दृष्टि करके चलना। जैसे महात्मा बुद्ध कहते थे किसी को भी छः फुट से ज्यादा ऊपर नही देखना चाहिए, अपने काम से मतलब रखना चाहिए, चंचल नही बनना चाहिए, झूठ, नशा, हिंसा,चोरी व्यभचार इन पांचों का त्याग करेंगे तो जीवन में तप बनेगा वही तप आपके सारे जीवन के जो विघ्न होंगे उनको हराता रहेगा ।

माता-पिता ने जो संस्कार बचपन से देते हैं उनको कहते हैं- आदत। हमारी आदत सुबह उठने की कब है, खाना पीना कैसे खाते हैं, किस तरह का खाते हैं, हम घर का भोजन करते हैं या बाहर जाकर होटलों में खाते हैं । ये सारे संस्कार माता पिता देते हैं और ये संस्कार तीस साल तक जब बने रह जाये तो तीस साल के बाद ये स्वभाव में परिवर्तित हो जाते हैं आप संस्कारो को बदल सकते हो आप किसी महापुरुष के पास रहकर अच्छे संस्कार ले सकते हो वही आपकी आदत बनेगे औऱ वही संस्कार जब आदत बन गये तो फिर स्वभाव में परिवर्तित हो जायेंगे। आपका स्वभाव एक दफा बन गया वो सारा जीवन नही बदलेगा फिर तो हमें कहना पड़ता है ये गुस्से हो रहा है इसके तो स्वभाव में ही है इसको छोड़ो। ये गाली दे रहा है, इसका तो स्वभाव ही ऐसा है।फिर सारा जीवन स्वभाव के हिसाब से गुजरना पड़ेगा और ना भक्ति कर सकेंगे अहंकार पैदा होगा मैं क्या इससे कम हूं। मैं तो बहुत बलवान हूँ बहुत ज्ञानी हूं ये छोटा सा ज्ञान उसको अंहकार के अंदर परिवर्तित कर देगा। लेकिन जिसको मां बाप ने संस्कार डाले वो अभिमानी नही होगा, घमण्डी नही होगा, बड़ो की सेवा करेगा, उनका सम्मान करेगा। जो बहुत समय तक महात्माओं के पास आता जाता रहता है सारा जीवन अपना समर्पित कर देता है उस बच्चे के जीवन को देखना और जो नही आता उनके जीवन को देखना तुम्हे पता चलेगा जीवन मे क्या फर्क है।

 

सत साहिब जी

महर्षि गंगादास जी महाराज

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