जगत के रिश्ते नाते कुछ समय के लिए और परमात्मा से शाश्वत रिश्ता।

कई बार हमारे मन मे प्रश्न आते होंगे कि-

  • संसार मे आगमन-गमन क्यों बन जाता हैं?
  • सिरजन-सिंहार क्यों हो जाता हैं?
  • निर्माण-नाश क्यों हो जाता हैं?
  • जन्म-मरण क्यों बन जाता हैं?
  • यहाँ संयोग-वियोग क्यों हो जाता हैं ?
  • क्या, इसका कोई निवारण हैं?

देखिये। संसार एक दुःख की पृष्ठ भूमि हैं औऱ संसार एक परखाड अनुभव, प्रभु को खोज लेने की प्रकिर्या हैं, परमात्मा को खोज लेने की व्यवस्था हैं। और इसी दुःख की पृष्ठभूमि में ही परमात्मा की ख़ोज शुरू होती हैं। मृत्यु की पृष्टभूमि में ही जीवन प्रकट होता हैं। असफलता में ही सफलता, विषाद में ही आनंद औऱ इसी आनंद में ही अपनी ख़ोज शुरू होती हैं। प्यासे होंगे तभी तो कंठ तृप्त होगा, भूखे होंगे तभी संतुष्टि होगी।

संसार एक रास्ता है, मंज़िल नही हैं। यहाँ आपको नित्य नये अनुभव मिलेंगे। जैसे ही हमारा जन्म होता है, सारे रिश्ते जुड़ जाते हैं। हम किसी के बेटा-बेटी हैं, कोई हमारे माता-पिता हैं, भाई बन्धु हैं, स्त्री-पुरुष हैं कितने रिश्ते जुड़ जाते हैं। लेकिन जब हम संसार से चले जाते हैं सब से वियोग हो जाता हैं सारे रिश्ते छूट जाते हैं। तो हमारे मन मे प्रश्न कौंध जाते हैं कि अपना कौन हैं? यहाँ संसार मे हम सबका कुछ समय के लिए संजोग हुआ हैं किसी का कुछ चुकाना हैं किसी से कुछ लेना हैं।  तो गरीबदास जी महाराज फरमाते हैं-

गरीब न्यारे-न्यारे कर्म हैं, न्यारी-न्यारी जात।

होक्का हुक्का हैं नहीं, झूठा संगी साथ।।

 

हर व्यक्ति के अलग-अलग कर्म हैं। जैसे हमारे मन की पृष्टभूमि होती हैं, वैसे कर्म करते हैं।औऱ पिछले कर्मों के जो हमारे संस्कार हैं हम वैसे कर्म करते हैं। तो सतगुरु कहते हैं – सबकी न्यारी-न्यारी जाति हैं, न्यारा-न्यारा स्वभाव हैं। कोई किसी का नही हैं ये तो झूठा संगी साथ हैं। साथ मिला फिर विछोड़ा हो जायेगा। फिर क्या कर रहे हैं यहाँ पर । तो आगे फ़िर निवारण करते हैं गरीबदास महाराज जी –

गरीब ऋण सम्बन्धी जुड़े हैं, मातर पितर भरात

गृह द्वारा औऱ स्त्री, आप आप को जात।।

 

किसी का ऋण चुकाना, किसी से ऋण लेना, माता-पिता भाई बंधु स्त्री।  तो सतगुरु कहते है फिर अपना अपना चुका के रास्ता पकड़ लेते है, चले जाते हैं

स्त्री-पुरूष गृह द्वारा नाती,कोई किसी का संग ना साथी।

ऋण सम्बन्धी जुड़े एक ठाठा, औऱ अंत समय में बारह बाँटा।।

 

बारह बाँट हो जाते हैं। फिर यहाँ प्रश्न खड़ा हो जाता हैं फिर असली रिश्ता कौन सा हैं। हमारा कौन हैं। जो जन्म जन्मान्तरों तक साथ दे। फिर आगे निवारण करते है सतगुरु ग़रीब दास महाराज जी –

ग़रीब सतगुरु संगी संत हैं, पारब्रह्म की सेव।

राम नाम निर्गुण जड़ी, पास रहे दिल देव।।

यहाँ पर निर्णय कर दिया। सतगुरु संगी संत हैं, सतगुरु हैं साथी। क्योंकि ये पारब्रह्म परमात्मा से हमारा रिश्ता जुड़ा देते हैं। इनका संबंध उनसे हैं औऱ वहीं हमारा असली रिश्ता हैं। वो हमें राम नाम की ऐसी निर्गुण जड़ी देते हैं, जिसका सुमिरण करने से हमारे अंदर वो परमात्मा प्रगट हो जाता हैं। इसलिए तो मीरा, सहजो बाई ने अनुभव किया। छोटी सी आयु में ही अनुभव कर लिया के संसार के रिश्ते नाते झूठे हैं औऱ गुरु चरणदास जी का पल्लू पकड़ लिया चरणों मे आ गई बहुत सेवा साधना की। तो यही कहती थीं सहजोबाई

सब रिश्ते मिल जायँगे, चौरासी के माह।

सहजो सतगुरु ना मिले, जो पकड़ छुड़ावै बाह।।

 

इस लाख चौरासी योनी के अंदर सारे रिश्ते मिल जायगे लेकिन सतगुरु मिलना कठिन हैं। वहीं तो इस भवसागर से हमारी भुजा पकड़ के पार कर सकते हैं। तो सब संतों का यही मत है यही समझते हैं।सतगुरु कबीर साहिब जी भी-

कबीर एक दिन ऐसा होएगा, कोई काहू का नाही।

घर की नारी को कहें, तन की नाड़ी नाही।।

 

एक दिन ऐसा होगा कोई किसी का नही होगा। घर की नारी को कहे- जो घर मे स्त्री हैं ना जिसको तू अपना कहता था लेकिन तन की नाड़ी नाही। जब आदमी गुज़रने लगता हैं तो कहते हैं अरे देखना इसकी नाड़ी छूट तो नही रही हैं। नाड़ी छूट जाये तो मृत्यु होती हैं। जब नाड़ी ही साथ छोड़ देती हैं तो नारी भी छोड़ देगी । घर की नारी औऱ तन की नाड़ी, दोनों छूट जाते हैं, कुछ भी साथ नहीं जाता हैं। इसलिए कबीर साहब ने हमे चेताने के लिए के संसार के रिश्ते नाते निभाने हैं, कुछ समय के लिए संजोग मिला हैं, किसी का रिश्ता घर तक हैं, किसी का शमशान तक हैं, कोई  तेरह दिन रोयेगा, कोई छः महीने, कोई साल तक फिर भूल जाते हैं। कितने व्यक्ति आये और हो हो के चले गये। तो कबीर साहब कहते हैं लेकिन मन कितना फूला रहता हैं इन रिश्तो में जो असली रिश्ता हैं परमात्मा का उसको भूल जाता हैं ।

सत साहिब

साध्वी शील दीदी जी

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